dossierNº 69

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के शिकंजे में लहूलुहान पाकिस्तान

यह डोसियर रिसर्च एंड पब्लिकेशन सेंटर (लाहौर, पाकिस्तान) के सहयोग से तैयार किया गया है और इसे लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज़ (एलयूएमएस) में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर, लाल बैंड के प्रवक्ता और मज़दूर किसान पार्टी तथा लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट के महासचिव तैमूर रहमान ने लिखा है।

इस डोसियर में छपी तस्वीरें अली अब्बास (‘नाद ई अली’) की हैं, जो एक दृश्य (visual) कलाकार हैं और लाहौर, पाकिस्तान में रहते हैं। इनकी कृतियाँ अलगाव, अपनेपन और सभी संस्कृतियों में सामान्य तौर पर मौजूद साझा विषयों की खोज करती हैं। ये तस्वीरें उनकी ‘हॉन्टोलॉजी ऑफ़ लाहौर’ (2017-वर्तमान) नामक श्रृंखला से ली गई हैं। ‘हॉन्टोलॉजी शब्द को दार्शनिक ज़ाक देरिदा से उधार लिया गया है। अब्बास के शब्दों में, ‘लाहौर के परिदृश्य के भीतर, इसकी हलचल भरी सड़कों, प्राचीन संरचनाओं और जीवंत समुदायों के बीच अप्रयुक्त भविष्य और अप्राप्त संभावनाओं का भंडार है।’ यह डोसियर न केवल पाकिस्तान के बल्कि व्यापक रूप से तीसरी दुनिया के उत्पीड़ित लोगों के आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक अर्थ में अप्रयुक्त भविष्य और अप्राप्त संभावनाओं के भंडार पर प्रकाश डालता है।

पाकिस्तान पिछले साल लगातार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में रहा, दुर्भाग्य से लगभग हर बार ग़लत वजहों से। हालाँकि दो दशकों से अधिक समय से देश की पहचान उग्रवाद और आतंकवाद से जुड़ी रही है, मगर हाल ही में पाकिस्तान प्राकृतिक आपदाओं और राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से चर्चा में है। विनाशकारी बाढ़ ने लाखों लोगों को विस्थापित कर दिया है, जबकि मार्च 2022 में अविश्वास प्रस्ताव के एक विवादास्पद वोट ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ यानी पीटीआई को सत्ता से बेदख़ल कर दिया।1

देश की अर्थव्यवस्था में होने वाले भारी और अभूतपूर्व संकुचन पर गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अनुमान लगाया था कि 2023 में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था केवल 0.5% बढ़ेगी और जनता को 27% से अधिक मुद्रास्फीति दर का सामना करना पड़ेगा।2 सरकार का अपना आँकड़ा बताता है कि 2023 में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था केवल 0.29% बढ़ी है।3 पाकिस्तान की जनसंख्या 1.8% की दर से बढ़ रही है, जो देश की आर्थिक वृद्धि दर को पछाड़ देगी। इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) घट जाएगा।4 आसान शब्दों में इसका मतलब यह है कि औसत पाकिस्तानी आने वाले सालों में काफ़ी ग़रीब होने जा रहा है।

विश्व बैंक के अनुसार, 2022 में मुद्रास्फीति तथा बाढ़ से फ़सलों के नष्ट होने की वजह से, जिसके कारण पाकिस्तान की एक तिहाई कृषि भूमि जलमग्न हो गई, पाकिस्तान में 84 से 91 लाख लोग संभवतः ग़रीबी रेखा से नीचे चले गए।5 बाढ़ के कारण होने वाली तबाही तथा आर्थिक नुक़सान का अनुमान 30 बिलियन डॉलर से अधिक लगाया जा रहा है, और पुनर्निर्माण के लिए कम-से-कम 16 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है।6
1961-2003 के बीच पाकिस्तान की जीडीपी वृद्धि दर

स्रोत: Macrotrends.7

बाढ़ से पहले कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में अवरोध और संकुचन पैदा कर दिया था। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2018 में 6.15% से गिरकर 2020 में -1.27% हो गई। यह गिरावट सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से थोक और खुदरा व्यापार के साथ-साथ परिवहन और संचार क्षेत्रों में तेज़ संकुचन की वजह से आई थी। महामारी ने बेरोज़गारी और ग़रीबी को बढ़ा दिया, क्योंकि लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के उपायों के कारण कई व्यवसायों का संचालन बंद हो गया या उन्हें अपनी गतिविधि सीमित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।8 महामारी ने पाकिस्तान के राजकोषीय और बाहरी असंतुलन को गंभीर रूप से बढ़ा दिया है क्योंकि कर राजस्व में गिरावट आई, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा पर ख़र्च बढ़ गया और निर्यात तथा पाकिस्तानी व्यक्तियों द्वारा विदेशों से भेजी गई रकम में कमी आई। आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, जमाख़ोरी और घबराहट में की गई ख़रीदारी के कारण खाद्य क़ीमतें बढ़ीं और 2021 में मुद्रास्फीति की दर दोहरे अंक में पहुँच गई।

हालाँकि कोविड-19 के बाद पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था ने तेज़ी से उबरना शुरू किया, लेकिन ऐसा कम समयावधि के लिए ही हो पाया। 2023 में व्यापार की प्रतिकूल शर्तों की वजह से अर्थव्यवस्था को फिर से संकटों का सामना करना पड़ा। जैसे ही अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले पाकिस्तानी रुपये में गिरावट आती है, पाकिस्तान का आयात ख़र्च बढ़ जाता है, जिससे बड़े पैमाने पर लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति होती है (यानी, जब मज़दूरी और कच्चे माल जैसी उत्पादन लागत में बढ़ोत्तरी के कारण क़ीमतें बढ़ती हैं)। आयात ख़र्च बढ़ने से बिजली, परिवहन और यहाँ तक कि कच्चे माल की लागत भी बढ़ जाती है, जिसका मतलब है कि स्थानीय उद्योग अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कम प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं। इस प्रकार, देश के आयात का मूल्य उसके निर्यात के मूल्य से अधिक हो जाता है, जिससे चालू खाता घाटा बढ़ जाता है। अंग्रेज़ी भाषा की एक फिल्म ग्राउंडहोग डे (1993) के समय-चक्र (time loop) की भाँति यह चक्र भी बिना किसी सुखद अंत के खुद को दोहराता रहता है।

वर्तमान पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट गठबंधन की सरकार, जो अप्रैल 2022 में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद सत्ता में आई थी, भारी आर्थिक और राजनीतिक कठिनाइयों का सामना कर रही है। सरकार के कदमों को असंवैधानिक ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए सरकार ने प्रांतीय चुनावों में देरी की। इस बीच, रोटी के लिए आतुर क़तारें लंबी होती जा रही हैं और आटा वितरण केंद्रों पर भगदड़ में बेहद ग़रीब लोग कुचले जा रहे हैं।9

कुल मिलाकर स्थितियाँ गंभीर हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?

कुछ लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान की परेशानियों के लिए रूस के व्लादिमीर पुतिन और चीन के शी जिनपिंग ज़िम्मेदार हैं।10 हालाँकि यह बहुत मासूम तर्क है। इस विचार के अनुसार यूक्रेन में युद्ध और चीनी क़र्ज़ देश की ऋण समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार हैं। जैसा कि अमेरिकी विदेश विभाग के काउंसलर डेरेक चॉलेट ने फ़रवरी 2023 में इस्लामाबाद की यात्रा के दौरान कहा था, ‘हम न केवल यहाँ पाकिस्तान में, बल्कि दुनिया भर में चीनी ऋण, या चीन के बक़ाया ऋण के बारे में अपनी चिंताओं को लेकर बहुत स्पष्ट हैं।’11

इस तरह की सोच तीन वजहों से ग़लत है। सबसे पहले, पाकिस्तान के व्यापार घाटे का संतुलन, जिसके कारण सरकार को ऋण लेना पड़ता है, यूक्रेन-युद्ध से बहुत पहले से चल रहा है। दूसरा, हालाँकि पाकिस्तान के विदेशी ऋण का लगभग 30% हिस्सा चीन द्वारा उपलब्ध कराया गया है, इस ऋण का अधिकांश हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) से जुड़ी परियोजना ऋण के रूप में है, जो बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा है। दूसरे शब्दों में, इस ऋण का उपयोग सीधे तौर पर देश के बुनियादी ढाँचे और आर्थिक विकास की संभावनाओं में सुधार के लिए किया जा रहा है।12 सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चीन ने पाकिस्तान के लिए कोई विशिष्ट आर्थिक मॉडल या नीति निर्धारित नहीं की है। यह आईएमएफ की सिफ़ारिशों का पालन करने के पाकिस्तान के लंबे इतिहास के बिलकुल विपरीत है: अपनी आज़ादी के बाद से 76 वर्षों में पाकिस्तान ने आईएमएफ के साथ 23 समझौते किए हैं- यानी, औसतन हर तीन साल में एक समझौता। इसके अलावा, मौजूदा नवउदारवादी कटौतियों पर आधारित उपायों की सिफ़ारिश आईएमएफ द्वारा की गई थी, जिसके कारण बिजली, ईंधन और गैस की क़ीमतें आसमान छू रही हैं।13

1995 में, पाकिस्तान विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में शामिल हो गया और देश का औसत आयात शुल्क 45% से घटकर 8.6% हो गया।14 पिछले 20 वर्षों से, विदेशी आयात के कारण स्थानीय बाज़ार में विदेशी सामान की बाढ़ आ गई है, और उपभोग आधारित नयी अर्थव्यवस्था उभरी है, जिसके कारण 2003 के बाद से व्यापार संतुलन में गंभीर रूप से गिरावट देखी गई है।15 पाकिस्तान अपनी भुगतान संतुलन की समस्याओं को हल करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका से अपने भू-रणनीतिक मूल्य को लंबे समय से भुनाता रहा है। जब 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया तो उसे पाकिस्तान के समर्थन की आवश्यकता थी और इसलिए उसने देश के ख़िलाफ़ अपने आर्थिक प्रतिबंध हटा दिए और उसे आर्थिक, सुरक्षा और सैन्य सहायता प्रदान की। इसी अवधि में, ‘आतंकवाद के खिलाफ़युद्ध’ में पाकिस्तान के रणनीतिक महत्व के कारण पेरिस क्लब ने पाकिस्तान पर बक़ाया 13.5 बिलियन डॉलर के कुल ऋण में से 12.5 बिलियन डॉलर का पुनर्निर्धारण किया।16 इसके अलावा, इसने देश को कुछ व्यापार रियायतें भी दीं।17 यह लगभग वैसा ही था जैसे पाकिस्तान को एक नई शुरूआत करने का मौका मिल गया हो।। लेकिन यह कोई स्थायी समाधान नहीं था।

2004 के बाद से, पाकिस्तान का आयात उसके निर्यात को पछाड़ने लगा।18 विदेशों से श्रमिकों द्वारा भेजे गए पैसे से इस असंतुलन को कुछ हद तक कम किया गया। हालाँकि, 2015 और 2018 के बीच पाकिस्तान का चालू खाता घाटा 2.8 बिलियन डॉलर से बढ़कर 18 बिलियन डॉलर हो गया।19 यह यूक्रेन युद्ध से पहले की स्थिति थी। बढ़ते चालू खाता घाटे का सहारा लेकर तथ्यों से ध्यान भटकाया गया तथा चीन और रूस के ख़िलाफ़ नये शीत युद्ध का माहौल बनाया गया। इसका सीपीईसी से कोई ख़ास लेना-देना नहीं था। पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धी नहीं होना और अपनी वहन क्षमता से ऊँची दरों पर वस्तुओं और सेवाओं का आयात जारी रखना बढ़ते घाटे का मुख्य कारण थे।

पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करने में विफल रहने का कारण श्रम लागत का अधिक होना नहीं है, बल्कि इसका कारण पिछले चार दशकों से निर्यात प्रोत्साहन लाभ प्राप्त करते रहने के बावजूद श्रम उत्पादकता बढ़ा पाने में असमर्थ कपड़ा निर्यातक हैं।20* देश के तकनीकी बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिए सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में किसी प्रकार का गंभीर प्रयास भी नहीं किया गया है। इसके परिणामस्वरूप समय के साथ बांग्लादेश, चीन और वियतनाम जैसे देशों ने कपड़ा उत्पादकता और निर्यात में पाकिस्तान को पीछे छोड़ दिया है।

साथ ही, अत्यधिक महंगी वस्तुओं के आयात में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी हो गई है कि पाकिस्तान का व्यापार घाटा अब 42 बिलियन डॉलर है, जिसमें से लगभग 30 बिलियन डॉलर का भुगतान श्रमिकों द्वारा भेजे गए धन से किया जाता है।21 देश की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ दशकों में पूरी तरह बदल गई गई है। 1960 और 1970 के दशक में हरित क्रांति के दौरान मुख्य रूप से कपास और कपास से संबंधित उत्पादों का निर्यात होता था, अब मुख्य रूप से कार्यबल और श्रम शक्ति का निर्यात हो रहा है।


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आयात-निर्भर अर्थव्यवस्था

1990 के दशक में जब वैश्विक नवउदारवादी लहर पाकिस्तान पहुँची, उस समय देश का सार्वजनिक स्वामित्व वाला बिजली क्षेत्र बढ़ती माँग के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ था। सरकार इस विशाल प्राकृतिक एकाधिकार का निजीकरण नहीं कर सकती थी, इसलिए निजीकरण के बजाय सरकार 1994 की स्वतंत्र बिजली उत्पादक नीति (आईपीपी) लेकर आई। इसके तहत विदेशी निवेशकों को बिजली संयंत्र बनाने के लिए आमंत्रित किया। आईपीपी को अनुबंध जारी करना 1990 के दशक के मध्य में पाकिस्तान के बिजली क्षेत्र सुधार कार्यक्रम का एक प्रमुख घटक था। इसका उद्देश्य बिजली उत्पादन में निजी निवेश को आकर्षित करना और सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली कंपनियों पर देश की निर्भरता को कम करना था। आज, पाकिस्तान की लगभग आधी बिजली का उत्पादन इन निजी स्वामित्व वाले बिजली उत्पादकों द्वारा किया जाता है जिन्हें आईपीपी कहा जाता है।

इस व्यवस्था के तहत सरकार आईपीपी इकाइयों को ऐसे अनुबंध प्रदान करती है जो प्रभावी रूप से उन्हें अमेरिकी डॉलर में लाभ की गारंटी देते हैं। चूँकि ईंधन और बिजली की दरें अनुबंध के तहत डॉलर में अनुबंध द्वारा पूर्व निर्धारित होती हैं, इसलिए जब डॉलर की क़ीमत बढ़ती है तो आईपीपी इकाइयों के मुनाफ़े पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता, लेकिन इससे सरकार की लागत बढ़ जाती है। आईपीपी इकाइयों ने सरकार से क्षमता शुल्क की व्यवस्था भी करा रखी है। इसके तहत जब ऊर्जा संयंत्र बिजली का उत्पादन करना शुरू करेंगे तब सरकार को उनसे बिजली न खरीदने की स्थिति में भी एक निश्चित रकम देनी होगी। दूसरे शब्दों में, बाज़ार का सारा जोखिम सरकार के सिर पर है और सारा मुनाफ़ा आईपीपी इकाईयों की झोली में।

इन निवेशकों के साथ समझौते ने आईपीपी इकाइयों को यह चुनने की पूरी आज़ादी दी कि वे बिजली का उत्पादन कैसे करेंगे। उन्होंने भट्ठी का तेल, तरल प्राकृतिक गैस और आयातित कोयले का उपयोग करके बिजली बनाने का विकल्प चुना, जिससे देश में बांधों के माध्यम से बिजली उत्पादन की जगह जीवाश्म ईंधन जलाकर बिजली बनाई जाने लगी। यह न केवल पर्यावरण के लिए ख़तरनाक है, बल्कि इन ईंधनों से बिजली उत्पादन की प्रति यूनिट लागत पानी से उत्पादित बिजली की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक है।22 चूँकि पाकिस्तान अधिक मात्रा में तेल का उत्पादन नहीं करता है, इसलिए उसे तेल आयात के मद में काफ़ी पैसा ख़र्च करना पड़ता है। इसको इस बात से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान अपनी कुल आयात लागत का लगभग एक-चौथाई तेल और गैस पर ख़र्च करता है।23

इसके अलावा, निजीकृत बिजली वितरण कंपनियाँ उत्पादन जारी रखने के लिए मुख्य रूप से सरकारी सब्सिडी पर निर्भर हैं।24 यह ऊर्जा नीति पाकिस्तान के चक्रीय ऋण संकट के पीछे के मुख्य कारणों में से एक है। जब सरकार आईपीपी इकाइयों का भुगतान करने में असमर्थ होती है, तो देश अचानक अंधेरे में डूब जाता है। बार-बार होने वाली बिजली कटौती ने कई उद्योगों को नष्ट कर दिया है, ख़ासकर फ़ैसलाबाद में बढ़ते पावरलूम क्षेत्र को।

इन संरचनात्मक मुद्दों के कारण जब तेल की क़ीमत बढ़ती है या जब डॉलर पाकिस्तानी रुपये के मुक़ाबले मज़बूत होता है, तो तेल आयात अधिक महंगा हो जाता है।25 नतीजतन, परिवहन और बिजली की लागत बढ़ जाती है, निर्यातक प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर पाते हैं और बिजली की मांग कम होने के कारण आईपीपी इकाइयों का बिल सरकार को चुकाना पड़ता है जिससे सरकार घाटे में चली जाती है। वास्तव में, जिन सरकारी संस्थानों को सबसे ज़्यादा नुक़सान होता है, वे वितरण कंपनियाँ हैं जो आईपीपी इकाइयों से बिजली ख़रीदती हैं और इससे अपने संबंधित क्षेत्रों में आपूर्ति करती हैं।

सैद्धांतिक नज़रिये से देखा जाए तो डॉलर की बढ़ती क़ीमतों से कमज़ोर मुद्रा वाले देश पाकिस्तान को निर्यात बाज़ार में और अधिक प्रतिस्पर्धी होना चाहिए। आयात अधिक महंगा और निर्यात सस्ता होना चाहिए। हालाँकि, आयात पर निर्भर एक अर्थव्यवस्था के लिए हक़ीक़त दीगर होती है।। चूँकि निर्यात वस्तुओं का उत्पादन आयात से जुड़ा हुआ है, ऐसे में डॉलर की बढ़ती क़ीमतों की वजह से व्यापार संतुलन बिगड़ जाता है। पाकिस्तान के उद्योग आवश्यक कच्चे माल और सामग्रियों का आयात किए बिना स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं या सेवाओं का निर्यात नहीं कर सकते हैं। यदि कोई देश अपने निर्यात के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, तो आयात की लागत बढ़ने पर उत्पादन की लागत बढ़ जाती है और उसकी घरेलू मुद्रा का मूल्य उसके व्यापारिक भागीदारों की मुद्राओं की तुलना में गिर जाता है। इससे उत्पादन लागत बढ़ सकती है और अंततः देश के निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।

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निर्यात बढ़ाना मुश्किल क्यों

लघु अवधि में निर्यात बढ़ाना आसान नहीं है। पाकिस्तान के विनिर्माण क्षेत्र में निजी और सार्वजनिक निवेश की कमी के कारण तकनीक पुरानी पड़ गई है और बुनियादी ढाँचा जर्जर हो गया है, जिससे स्थानीय निर्माताओं के लिए विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो गया है। आईएमएफ की शर्तों ने बुनियादी ढाँचे को उन्नत बनाने और औद्योगीकरण में तेज़ी लाने के लिए आवश्यक निर्यात की मात्रा को और कम कर दिया है।

निर्यात बढ़ाने में एक और बड़ी बाधा यह है कि ईंधन की बढ़ी हुई क़ीमत व्यवसाय करने के लिए आवश्यक परिवहन और अन्य रसद की लागत को बढ़ा देती है। इन बाधाओं की वजह से स्थानीय निर्माताओं के मुनाफ़े में गिरावट आ जाती है, जिससे कई कारख़ाने बंद हो गए हैं और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई है। अल्पकालिक आईएमएफ ऋणों द्वारा निर्धारित शर्तें इस इस समस्या की गंभीरता को बढ़ाती हैं।

निर्यात बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों को प्रशिक्षित करना, प्रौद्योगिकियों का नवीनीकरण करना और निर्यात वस्तुओं के निर्माण में निवेश बढ़ाना आवश्यक है। नवउदारवादी मितव्ययिता की नीतियों का पालन करने वाली सरकार उपरोक्त उद्देश्यों को हासिल नहीं कर सकती। पाकिस्तान पर आईएमएफ द्वारा थोपे गए मितव्ययिता के नवउदारवादी एजेंडे के कारण सरकार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का उदारीकरण करने तथा डॉलर की क़ीमत को नियंत्रित करने हेतु राजकीय नियंत्रण का प्रयोग न करने के लिए बाध्य है। यही कारण है कि वित्त मंत्री इशाक डार समेत पाकिस्तान के अधिकारी लगातार डॉलर की क़ीमत कम करने की कोशिश कर रहे हैं।


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आईएमएफ द्वारा थोपा गया निजीकरण

आईएमएफ तक़रीबन 1991 से पाकिस्तान पर राजकीय स्वामित्व वाले उद्यमों (एसओई) का निजीकरण करने के लिए दबाव डाल रहा है। 1991 और 2015 के बीच 172 सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर के 6.5 बिलियन डॉलर इकट्ठा करने के बावजूद पाकिस्तान  अपने बजटीय घाटे अथवा  विकास के दीर्घकालिक मुद्दों को हल करने में असमर्थ रहा है।26 वर्तमान में, सार्वजनिक क्षेत्र के 85 उपक्रम बचे हुए हैं, जो सात क्षेत्रों में काम करते हैं: बिजली; तेल और गैस; बुनियादी ढाँचा, परिवहन और संचार; विनिर्माण, खनन और इंजीनियरिंग; वित्त; औद्योगिक संपदा विकास और प्रबंधन; तथा थोक, खुदरा और मार्केटिंग।27 इनमें से दो-तिहाई, यानी 51 लाभ कमा रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र का लगभग 80-90% घाटा केवल नौ उद्यमों से होता है: पाकिस्तान रेलवे, पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस, पाकिस्तान स्टील मिल्स कॉर्पोरेशन, ज़रई तरक़्क़ियाती बैंक लिमिटेड और पाँच बिजली वितरण कंपनियाँ।28 दूसरे शब्दों में, महंगा बिजली क्षेत्र पाकिस्तान के भारी बजट घाटे का मुख्य कारण है और इसके घाटे का सीधा संबंध ऊर्जा उत्पादन के निजीकरण के निर्णय से है।29

1994 की निजी विद्युत नीति का उद्देश्य बिजली कटौती (load-shedding) की समस्या का समाधान करना था। इसे विश्व बैंक का पूरा समर्थन प्राप्त था और तत्कालीन अमेरिकी ऊर्जा सचिव हेज़ल आर. ओ’लेरी ने ‘पूरी दुनिया में सबसे अच्छी ऊर्जा नीति’ के रूप में इसकी सराहना की थी।30 पूँजीवादी संस्थानों के इस तरह के ज़ोरदार समर्थन के बाद उत्सुक पाकिस्तानी सरकार ने बहुत जल्दी इस नीति को अपना लिया। हालाँकि, 1994 की नीति ने ऊर्जा क्षेत्र में 5 अरब डॉलर का नया निवेश आकर्षित किया और देश की बिजली पैदा करने की क्षमता 4,500 मेगावाट तक बढ़ गई, लेकिन ऊर्जा और इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा और पूरी अर्थव्यवस्था के लिए इसका दीर्घकालिक परिणाम विनाशकारी सिद्ध हुआ।31

सबसे पहले, बिजली की बढ़ती लागत के परिणामस्वरूप सभी उद्योगों में मुनाफ़ा की दरें कम हो गईं। दूसरा, आईपीपी इकाइयों को इक्विटी पर डॉलर-सूचकांकित रिटर्न की गारंटी ने निवेश जोख़िम का पूरा बोझ पाकिस्तानी सरकार पर डाल दिया। तेल की क़ीमत या डॉलर के उतार-चढ़ाव और क्षमता शुल्क32 के कारण बढ़ते ईंधन शुल्क का पूरा बोझ पाकिस्तानी जनता को वहन करना पड़ा। तीसरा, जैसा कि पाकिस्तान की सीनेट की बिजली पर स्थायी समिति की उपसमिति की रिपोर्ट (2020) से पता चलता है कि कई मौक़ों पर आईपीपी इकाईयों ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक पावर नियामक प्राधिकरण (एनईपीआरए) विनियमों द्वारा इक्विटी पर तय 15% से अधिक एकाधिकार मुनाफ़ा (monopoly profit) अर्जित करने के लिए लेखांकन (accounting) में हेरफेर किया, जिसका बोझ सरकारी खजाने को वहन करना पड़ा।33 चौथा, बिजली की बढ़ी हुई क़ीमतों की वजह से एक समय में देश का लाभकारी कपड़ा निर्यात क्षेत्र अब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धी नहीं रहा। हाल ही में, ऑल-पाकिस्तान टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने आशंका व्यक्त की है कि बिजली की बढ़ी क़ीमतों की वजह से पंजाब में बने कपड़े का निर्यात पूरी तरह से बंद हो सकता है। पाँचवाँ, आईपीपी को समय पर क्षमता शुल्क का भुगतान करने में सरकार की असमर्थता के कारण देश को लगातार बिजली कटौती या कम बिजली आपूर्ति का सामना करना पड़ता है। पूरे पाकिस्तान में व्यवसायों ने अपने संयंत्रों को चालू रखने के लिए बिजली के वैकल्पिक निजी स्रोत स्थापित कर रखे हैं। अंत में, आईपीपी अनुबंधों ने पाकिस्तान के व्यापार घाटे के संतुलन को बिगाड़कर रख दिया है, जिससे देश को आवश्यक अल्पकालिक ऋणों के लिए आईएमएफ के पास जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। अंततः, बिजली के निजीकरण ने पाकिस्तान के बजट और व्यापार घाटे को काफ़ी बढ़ा दिया है।

पाकिस्तान में सत्ता में आने वाली किसी भी सरकार को चालू खाते के घाटे को कम करने और कम होते हुए विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जैसे-जैसे इस भंडार में गिरावट आती है, नेताओं को डिफ़ॉल्ट का डर सताने लगता है और वे विदेशी वित्तीय सहायता पाने की कोशिश में लग जाते हैं। हालाँकि, आईएमएफ की मंज़ूरी के बिना अन्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान (आईएफ़आई) देश को ऋण देने के इच्छुक नहीं हैं। परिणामस्वरूप, डिफ़ॉल्ट के इस डर से निर्वाचित प्रतिनिधियों को ऋण माँगने के लिए आईएमएफ की शरण में जाना पड़ा है।

पूर्व प्रधान मंत्री शहबाज़ शरीफ़ द्वारा अप्रैल 2022 में अपना कार्यकाल शुरू करने के कुछ महीने बाद सरकार ने आईएमएफ के साथ एक स्टैंड-बाय व्यवस्था (एसबीए) पर बातचीत की जिसके तहत ज़रूरत पड़ने पर पाकिस्तानी सरकार 3 बिलियन डॉलर तक की रकम आईएमएफ से उधार ले सकती है। प्रशासन ने इस सौदे को ऐसे प्रदर्शित किया मानो उसने प्राचीन फ़ारस साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर ली हो। यह तेईसवाँ आईएमएफ कार्यक्रम है जिस पर पाकिस्तानी सरकार ने आईएमएफ के साथ ‘बातचीत’ की है, जिस बातचीत में कहा गया कि पाकिस्तान को स्थिरता प्रदान करने के लिए ऐसे और अधिक कार्यक्रमों की आवश्यकता है।34 धन के साथ यह शर्त लगा दी गई है कि सरकार को निम्नलिखित उपाय करने होंगे: (1) बिजली, गैस और ईंधन से संबंधित सभी सब्सिडी समाप्त करना; (2) ब्याज दर बढ़ाना; (3) बाज़ार को विनिमय दर निर्धारित करने की अनुमति देना; और (4) एसओई का पुनर्गठन। पाकिस्तान के पास इन शर्तों का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, जिसके बाद मुद्रास्फीति अपरिहार्य रूप से बढ़ गई।

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औंधे मुंह गिरा राष्ट्रीय बजट

जून 2023 में, वित्त मंत्री इशाक डार ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में सरकार का वार्षिक बजट पेश किया। हालाँकि व्यापक रूप से यह उम्मीद की जा रही थी कि बजट अत्यधिक नवउदारवादी कटौती पर आधारित होगा। अक्टूबर में चुनाव की संभावनाओं के कारण पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) ने करों में वृद्धि अथवा राज्य के ख़र्च को कम नहीं करने का फ़ैसला किया। इसके बजाय, इसने सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में 35% तक की वृद्धि की।35 नया बजट इस कमज़ोर धारणा पर आधारित थी कि पाकिस्तान अन्य देशों और आईएफ़आई से 22 बिलियन डॉलर जुटाने में सक्षम होगा।36 इससे पाकिस्तान का विदेशी क़र्ज़ बढ़कर लगभग 150 बिलियन डॉलर हो जाएगा, देश की वार्षिक जीडीपी का लगभग आधा।

हालाँकि, नेशनल असेंबली द्वारा बजट को मंज़ूरी दिए जाने के बाद आईएमएफ एसबीए के लिए सहमत नहीं हुआ। आईएमएफ के साथ सौदा तय करने के लिए वित्त मंत्री ने सरकारी ख़र्च में 85 बिलियन रुपये (298 मिलियन डॉलर) की कटौती करके तथा 215 बिलियन रुपये (735 मिलियन डॉलर) के नये करों का प्रावधान करके मनमाने ढंग से बजट में बदलाव कर दिया।37 इनमें से किसी भी उपाय को नेशनल असेंबली द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया, न ही नये बजट पर सार्वजनिक बहस हुई। नये बजट के प्रावधानों से आश्वस्त हो जाने के बाद आईएमएफ एसबीए पर सहमत हुआ। आईएमएफ के इशारे पर वित्त मंत्री डार द्वारा पाकिस्तानी जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों को दरकिनार करना आज़ादी के बाद के 76 वर्षों में देश की आर्थिक संप्रभुता का सबसे बड़ा उल्लंघन था।

पाकिस्तान जैसे देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर से पूरी तरह नियंत्रण खो दिया है। इसका एक और प्रमाण यह है कि स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान क़ानूनी रूप से सरकार से स्वायत्त है और इसका नेतृत्व अक्सर पूर्व आईएमएफ अर्थशास्त्री करते हैं। आईएमएफ से किसी तरह का समझौता करने के लिए सरकार से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, ब्याज दरों, करों, सरकारी व्यय और यहाँ तक कि बिजली, पेट्रोल, डीज़ल और गैस जैसी आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतों के संबंध में आईएमएफ नीतियों को स्वीकार करने की उम्मीद की जाती है। इसलिए मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति या समग्र आर्थिक नीति अब पाकिस्तानी नियंत्रण में नहीं है। यदि पाकिस्तानी सरकार एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति (जैसा कि आधुनिक मौद्रिक सिद्धांत कहता है) के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के ख़र्च को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना चाहे, तो वह ऐसा नहीं कर सकती। स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के गवर्नर के पास इतनी शक्ति है कि वह अधिक धन आपूर्ति करने के सरकारी निर्देशों को अस्वीकार कर सकता है।

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‘अपने साधनों के दायरे में रहो’

तीसरी दुनिया के सभी देशों के लिए आईएमएफ का आदेश है कि ‘अपने साधनों के दायरे में रहो’। यह समझदारी भरी सलाह लगती है, क्योंकि आख़िरकार कोई भी परिवार, व्यवसाय या देश जो अपनी कमाई से अधिक ख़र्च करता है, तो वह क़र्ज़ में डूब जाएगा। इस प्रकार, सरकारों को करों द्वारा अर्जित आय से अधिक ख़र्च नहीं करना चाहिए और देशों को निर्यात से अधिक आयात नहीं करना चाहिए। बहरहाल, पाकिस्तान ये दोनों ‘पाप’ करता है, जिससे निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं: पाकिस्तान अपने आयात को नियंत्रित क्यों नहीं कर सकता? सरकार के अत्यधिक योग्य अर्थशास्त्री बैठकर इस पर काम क्यों नहीं कर सकते? चूँकि देश प्रति वर्ष लगभग 50 बिलियन डॉलर (निर्यात से 20 बिलियन डॉलर और विदेशों में काम करनेवाले पाकिस्तानियों के भेजे पैसों से 30 बिलियन डॉलर) कमाता है, इसलिए इसका आयात 50 बिलियन डॉलर की सीमा के भीतर होना चाहिए – न कि उससे अधिक, जो राशि वर्तमान में 70 बिलियन डॉलर है। यदि हर परिवार को पता है कि आप अपनी कमाई से अधिक ख़र्च नहीं कर सकते हैं, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि ये अर्थशास्त्री, जो सबसे परिष्कृत गणितीय कौशल से लैस हैं, यह योजना नहीं बना सकते कि सरकार क्या और कितना आयात करेगी? यदि तीसरी दुनिया के देश इस प्रकार की योजनाएँ बना सकते हैं, तो उन्हें कभी भी भुगतान संतुलन घाटे, चालू खाता घाटे या घटते विदेशी मुद्रा भंडार का सामना नहीं करना पड़ेगा। उन्हें कभी भी किसी आईएफ़आई से पैसा उधार नहीं लेना पड़ेगा। मगर ऐसा क्यों नहीं होता?

इन सवालों का जवाब देने के लिए, आइए हम ऋण प्राप्तकर्ताओं के लिए आईएमएफ की चार प्रमुख सिफ़ारिशों के साथ-साथ पाकिस्तान जैसे विकासशील देशों पर उनके प्रभाव पर गहराई से विचार करें। आईएमएफ की पहली और सबसे महत्वपूर्ण सिफ़ारिश है कि पाकिस्तान निर्यात और आयात के लिए सभी बाधाओं को हटा दे और बाज़ार को डॉलर के मुक़ाबले रुपये की क़ीमत निर्धारित करने की अनुमति दे। इसका प्रभावी अर्थ यह है कि सरकार व्यापार घाटे को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने में असमर्थ है। माना जाता है कि डॉलर के मुक़ाबले रुपये की क़ीमत में उतार-चढ़ाव व्यापार को संतुलित करता है, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं होता है: जैसे-जैसे डॉलर बढ़ता है, वैसे-वैसे पाकिस्तान में निर्यात उद्योगों के लिए कच्चे माल की क़ीमत भी बढ़ती है। परिणामस्वरूप, पाकिस्तानी उद्योग अधिक प्रतिस्पर्धी बनने में विफल हो जाते हैं और अर्थव्यवस्था लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति का अनुभव करती है।

आईएमएफ पाकिस्तान को अपने साधनों के दायरे में रहने के लिए कहता है, लेकिन सरकार को रुपये-डॉलर विनिमय दर को विनियमित करके अपने चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करने की अनुमति नहीं देता है। जब आईएमएफ पाकिस्तान सरकार को ऋण देने के लिए तैयार नहीं था तब पाकिस्तान आयातकों के साख पत्र38 (letter of credit) पर पाबंदी लगा कर अपने चालू खाते के घाटे को 75% तक कम करने में सक्षम रहा था।39

विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से डॉलर में जमा विदेशी ऋण पर असर पड़ता है। इस वजह से डॉलर को विनियमित करने में सरकार की अक्षमता विदेशी ऋण को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, यदि डॉलर का मूल्य रुपये की तुलना में 10% बढ़ जाता है तो इससे पाकिस्तान के विदेशी ऋण की देनदारी में 10% की वृद्धि होगी, जो 37 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 41 ट्रिलियन रुपये (130 बिलियन डॉलर से बढ़कर 144 बिलियन डॉलर) हो जाएगा। चूँकि पाकिस्तान की कुल ऋण देनदारियाँ उसके वार्षिक निर्यात से छह गुना से अधिक हैं, इसलिए अपने निर्यात को बढ़ाने में सक्षम होने की अवस्था में भी पाकिस्तान को बढ़े निर्यात के फायदे की तुलना में विदेशी ऋणों की वृद्धि से हुआ नुकसान बेहद ज्यादा होगा। इस तरह देश श्रम के अंतर्राष्ट्रीय विभाजन में एक पायदान और नीचे खिसक जाता है।

रुपये के अवमूल्यन से प्लास्टिक, धातु, स्टील और औद्योगिक रसायनों जैसी महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की क़ीमत में भी नाटकीय वृद्धि होती है। अपने इतिहास में अधिकतर समय पाकिस्तान ने अन्य देशों को कपास का निर्यात किया, लेकिन हाल के वर्षों में आश्चर्यजनक रूप से इस ट्रेंड में परिवर्तन आ गया है, अब वह कच्चे कपास के आयात पर सालाना लगभग 2 बिलियन डॉलर ख़र्च करता है जिसका उपयोग निर्यात के लिए बनाए जाने वाले कपड़े के सामान में किया जाता है।40 घरेलू कपास का उत्पादन कम हो गया है इसका मुख्य कारण है नये बीजों की खोज न होना और घरेलू बाज़ार को गन्ने के उत्पादन के लिए मिलने वाला प्रोत्साहन। स्वाभाविक रूप से, जब डॉलर बढ़ता है तब कच्चे आयातित कपास की क़ीमत भी बढ़ती है, जिससे निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता और कम हो जाती है। यदि डॉलर मज़बूत होता है और अधिक परिष्कृत मशीनरी आयात करने की लागत बढ़ जाती है तो पाकिस्तान के उद्योगों के तकनीकी आधार को कैसे सुधारा जा सकता है?

इन मुद्दों को और भी गंभीर बनाने वाली सच्चाई यह है कि निजी पूँजी लगातार पाकिस्तान से पलायन कर रही है। पूँजीपति वर्ग ने हमेशा अपनी संपत्ति का निवेश देश के बाहर अलग-अलग क्षेत्रों में किया है। शासक वर्ग की कुछ संपत्तियाँ पाकिस्तान के भीतर हैं, लेकिन उनकी अधिकांश संपत्ति विदेशी बैंकों में जमा हैं और मध्य पूर्व में रियल एस्टेट में लगी हुई हैं। मुक्त व्यापार व्यवस्था पूँजी के आवागमन को आसान बनाती है जबकि श्रम को आव्रजन क़ानूनों (immigration laws) द्वारा सख़्ती से नियंत्रित किया जाता है।41 पाकिस्तान बहुत तेज़ी से पूँजी और श्रम दोनों को खो रहा है। आईएमएफ की मुक्त व्यापार व्यवस्था तीसरी दुनिया के देशों की पूँजी के पलायन (capital flight) को विनियमित करने की शक्ति को छीन लेती है।

द नेशन के अनुसार, 1978 और 2018 के बीच पाकिस्तान से पूँजी का कुल पलायन 333 बिलियन डॉलर (2010 की दर के अनुसार) था और अकेले 2013 और 2014 के बीच पाकिस्तानियों ने दुबई में 4.3 बिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति ख़रीदी।42 पाकिस्तान सरकार पूँजी के पलायन को रोकने तथा देश में घरेलू निवेश को बढ़ावा देने में असमर्थ है। लगातार मज़बूत होते डॉलर के परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान में उच्च ब्याज या लाभ दर भी रुपये के अवमूल्यन के कारण व्यवसायों को होने वाले नुक़सान की भरपाई नहीं कर सकती है। इसलिए, मध्य पूर्वी या पश्चिमी बैंकों से निम्न ब्याज दर मिलने के बादजूद पाकिस्तानी अपने देश में अपनी पूँजी निवेश करने का जोखिम उठाने के बजाय इन बैंकों में निवेश करना पसंद करते हैं।

कुशल श्रमिकों का पलायन या ‘प्रतिभा पलायन’ एक अतिरिक्त समस्या है। 2022 में 800,000 लोगों ने विदेशों में काम करने के लिए पाकिस्तान छोड़ दिया। 2023 में यह संख्या दस लाख तक पहुँचने की उम्मीद है।43 इनमें से बहुत से लोग अभी युवावस्था में हैं इसलिए उत्पादक श्रमिक हैं। क्या हर साल दस लाख शिक्षित श्रमिकों को खोने वाली कोई भी अर्थव्यवस्था प्रगति कर सकती है? मज़दूर पूँजी के पीछे जाएँगे, इसलिए दोनों पाकिस्तान से बाहर जा रहे हैं। पूँजी और मज़दूरों के पलायन के बाद एक ऐसा देश बचता है जो पुराने कपड़ा उद्योग से कुछ कपड़े तैयार करता है। पुराना कपड़ा उद्योग ऐसे दौर में स्थापित किया गया था जब पाकिस्तान पश्चिम के लिए रणनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था। अब पाकिस्तान मध्य-पूर्व और यूरोप के लिए अल्प-कुशल श्रम (low-skilled labour) शक्ति का आपूर्तिकर्ता बनकर रह गया है।

2023 के राष्ट्रीय बजट में सब्सिडी मद में काफ़ी पैसा रखा गया है।44 आईएमएफ की सिफ़ारिश है कि सरकार ईंधन और बिजली सब्सिडी ख़त्म कर दे। विडंबना यह है कि बिजली का निजीकरण पाकिस्तानी सरकार के बजट असंतुलन का मुख्य कारण है: 1 ट्रिलियन रुपये (3.7 बिलियन डॉलर) की सब्सिडी दी गई, जिसमें से बिजली क्षेत्र को 677 बिलियन रुपये (2.34 बिलियन डॉलर) का भुगतान किया गया।45 हालाँकि कुछ आईपीपी इकाइयों का स्वामित्व या संचालन पाकिस्तानियों द्वारा किया जाता है, मगर कई विदेशी स्वामित्व वाले हैं या विदेशों से किए गए बड़े निवेश द्वारा संचालित होते हैं।46 यदि सब्सिडी भुगतान नहीं किया जाता है, तो वैसी स्थिति में आईपीपी इकाइयाँ पाकिस्तान को निवेश विवादों के निपटान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीएसआईडी) की अदालत में घसीट सकती है। ऐसे उदाहरण पहले से मौजूद हैं। 2020 में, पट्टा विवाद की वजह से पाकिस्तान द्वारा रेको डिक़ खनन परियोजना को रोकने के बाद आईसीएसआईडी ने कनाडाई-चिली कंपनी टेथियन कॉपर को लगभग 6 बिलियन डॉलर का हर्जाना दिया।47

देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है, उसके बावजूद आईएमएफ मुद्रास्फीति से निपटने के लिए व्यय में कटौती, नये कर लगाने और अविश्वसनीय रूप से उच्च ब्याज दर बनाए रखने की सिफ़ारिश करता है (पाकिस्तान की अंतरबैंक ब्याज दर वर्तमान में 21% है)। दूसरे शब्दों में, ठीक उसी समय जब कुल माँग लड़खड़ा रही है, आईएमएफ की नीतिगत सिफ़ारिशें सार्वजनिक निवेश को कम करके और निजी निवेश को रोककर अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के अवसरों को समाप्त कर देंगी, जिससे पाकिस्तान की मुद्रास्फीतिजनित मंदी और बढ़ जाएगी।

इसके अलावा, आईएमएफ एसओई के ‘पुनर्गठन’ की सिफ़ारिश करता है। हालाँकि दशकों से उपेक्षित इन संस्थाओं को निश्चित रूप से पुनर्गठित करने तथा निवेश की आवश्यकता है, लेकिन आईएमएफ का यह मतलब नहीं है। बल्कि, आईएमएफ सुझाव दे रहा है कि सरकार एसओई के स्वामित्व या प्रबंधन का निजीकरण करने पर विचार करे, जबकि आईएमएफ इस बात पर अड़ा हुआ है कि सरकार आईपीपी को भुगतान करे। आईपीपी को किया जाने वाला सरकारी भुगतान राज्य सब्सिडी का बड़ा हिस्सा है। यह रुख़ विरोधाभासी है: वे एसओई जो पहले से ही घाटे में हैं और लाभ कमाने के लिए जिसमें बड़े पैमाने पर नये निवेश की आवश्यकता है, उन्हें निजी कंपनियों द्वारा नहीं ख़रीदा जाएगा। साथ ही, आईएमएफ की नीतिगत सिफ़ारिशें सरकार को इन उद्यमों को आधुनिक तथा कुशल प्रदर्शन करने के काबिल बनाने वाले आवश्यक निवेश करने की अनुमति नहीं देती हैं।

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व्यापार के लिए देश को खोलना

अपने मिशन वक्तव्य में आईएमएफ ‘उच्च रोज़गार और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और दुनिया भर में ग़रीबी को कम करने’ का दावा करता है। हालाँकि, यह दावा इसके तीन प्राथमिक उद्देश्यों के लिए पूरी तरह से गौण है: पहला, ‘वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना’ – अर्थात, यह सुनिश्चित करना कि बाज़ार डॉलर की दर निर्धारित करे; दूसरा, अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए घाटे वाले राजकोषीय ख़र्च की कीनेसियन नीति को समाप्त करके ‘वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करना’; और तीसरा, किसी भी प्रकार के आयात प्रतिबंध को हटाकर ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाना’।48

आईएमएफ का यह दृढ़ विश्वास है कि बाज़ार के पास सब समस्याओं का समाधान है। वह अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्थाओं का विस्तार से अध्ययन किए बिना सभी देशों के लिए एक जैसे समाधान पेश कर देता है। उसके लिए लगभग हर आर्थिक समस्या का सीधा और सरल सा समाधान है बाज़ार को सभी चीजों की कीमतें निर्धारित करने देना। आईएमएफ़ मानता है कि इससे सारी समस्याएँ जादुई रूप से अपने आप हल हो जाएँगी। जिन देशों को वह ऋण देता है, उनकी विभिन्न वास्तविकताओं को समझने की कोशिश करने के बजाय आईएमएफ मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए चिंतित रहता है कि उसकी पहुँच के भीतर कोई भी देश निम्नलिखित फ़ॉर्मूले से विचलित न हो: वे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाएँ, राजकोषीय घाटे को ख़त्म करें, डॉलर की दर बाज़ार को निर्धारित करने दें, और अर्थव्यवस्था का निजीकरण करें।

आईएमएफ की रणनीति पाकिस्तान में विकास को बढ़ाने के लिए नहीं बनाई गई है, जिसके लिए कम-से-कम ब्याज दरों और/या उच्च सार्वजनिक ख़र्च की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत, इसे इस तरह तैयार किया गया है कि अंतर्राष्ट्रीय पूँजी को इस देश में व्यापार करने की खुली छूट मिले। पाकिस्तान का मामला कोई असाधारण मामला नहीं है; यह आईएमएफ की कार्यप्रणाली को दर्शाता जिसे वह छोटी बड़ी हर तरह की अर्थव्यवस्था पर लागू करता है। आईएमएफ़ की कारवाईयों के परिणामस्वरूप जब कोई देश मंदी की स्थिति में पहुँच जाता है तब वह उनसे अपना पल्ला झाड़ लेता है।

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मुद्रास्फीति और वर्ग संघर्ष

कुल मिलाकर, इस प्रकार की आर्थिक नीति का पाकिस्तान में वर्ग संघर्ष पर दो विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। पहला, मुद्रास्फीति का पाकिस्तान के श्रमिक वर्ग तथा कुलीन वर्ग पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। मुद्रास्फीति का पाकिस्तानी अभिजात वर्ग पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है, जो देश के भीतर अपना व्यवसाय चलाने के लिए तरल निवेश (liquid investments) बनाए रखते हैं और अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा विदेशों में रखते हैं। अक्सर डॉलर में होने के कारण स्थानीय मुद्रास्फीति से उनकी विदेशी स्वामित्व वाली संपत्तियों का मूल्य पाकिस्तान में बढ़ जाता है। श्रमिक वर्ग और ग़रीबी रेखा के आस-पास रहने वाले लोगों की स्थिति बिल्कुल अलग होती है। इन पर मुद्रास्फीति का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। पाकिस्तान में, असमानता बहुत अधिक बढ़ गई है क्योंकि श्रमिक वर्ग और ग़रीबों के पास अगर संपत्ति होती भी है तो केवल देश के भीतर होती है।

दूसरा, मुद्रास्फीति ने पाकिस्तान की मुख्य आर्थिक समस्या, बढ़ते व्यापार घाटे को विकराल बना दिया है। वे देश जिनकी श्रम उत्पादकता नहीं बढ़ती है या जिनके पास बेचने के लिए मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन (जैसे तेल, गैस, सोना और खनिज) नहीं हैं, वे अनिवार्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में श्रम के वैश्विक विभाजन के मामले में पिछड़ जाते हैं। पूँजीवाद प्रतिस्पर्धा की एक प्रणाली है। श्रमिक श्रमिकों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, पूँजीपति पूँजीपतियों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, और देश अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। जो लोग प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते उन्हें व्यापार की प्रतिकूल शर्तों का सामना करना पड़ता है। जैसा कि वैश्वीकरण के समर्थक हमें याद दिलाते नहीं थकते कि लगभग सभी देश एक विश्व बाज़ार का हिस्सा हैं, और इसलिए राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बिना काम नहीं कर सकती हैं।

जैसे ही पाकिस्तान दुनिया के लिए आवश्यक उत्पाद बनाने की दौड़ में पिछड़ गया वह एक चक्रीय संकट में उलझकर रह गया। आईएमएफ द्वारा सुझाए गए एकमात्र अल्पकालिक विकल्प यह सुनिश्चित करते हैं कि पाकिस्तान लंबे समय तक इस चक्र में उलझा रहे। आईएमएफ का नीतिगत ढाँचा एक अंतहीन दौड़ की तरह है जिसमें से तीसरी दुनिया के देशों के लिए बाहर निकल पाना असंभव है।  इन वजहों से पाकिस्तान आर्थिक रूप से आईएमएफ पर निर्भर रहेगा।

नवउदारवादी अर्थशास्त्री यह सुनते ही क्रोधित हो जाते हैं कि बाज़ार संसाधनों का कुशलतापूर्वक आवंटन नहीं करता है, या  बाज़ार अस्थिर होते हैं। यह सुनना उन्हें क़तई मंजूर नहीं होता कि तथाकथित बाज़ार संतुलित उत्पादन या विकास को बढ़ावा नहीं देते हैं बल्कि केवल मुनाफ़े को अधिकतम करना ही उनका लक्ष्य होता है। आईएमएफ के प्रति अपने दायित्वों को पूरा नहीं करने पर पाकिस्तानी मीडिया भी पाक सरकार पर उसी तरह बरसता है। लेकिन ये दृष्टिकोण इस तथ्य को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करते हैं कि निर्वाचित प्रतिनिधियों का दायित्व जनता के प्रति है। आईएमएफ के कार्यक्रमों की आर्थिक और मानवीय कीमत इतनी अधिक है कि कोई भी राजनीतिक नेतृत्व जिसे जनता के समर्थन की आवश्यकता है,  उन्हें पूरी तरह से लागू नहीं कर सकता, क्योंकि वे मूल रूप से लोकतंत्र विरोधी हैं। प्रतिनिधित्व आधारित लोकतंत्र के बुर्जुआ संसदीय स्वरूप को नष्ट करके ही आईएमएफ की माँगों को पूरा किया जा सकता है।

आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में पाकिस्तान जो पहला क़दम उठा सकता है, वह है अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विनिमय दर को विनियमित करना, स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान का नियंत्रण वापस लेना और ऐसे किसी भी बजट को अस्वीकार करना जिसे जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है। हालाँकि अभी समाजवाद का रास्ता तय होना बाक़ी है, फिर भी कम-से-कम यह वर्तमान संदर्भ में एक बड़ा क़दम होगा, जहाँ दुनिया के अधिकांश हिस्सों से स्वतंत्र राष्ट्रीय पूँजीवादी विकास की संभावना भी ख़त्म कर दी गई है।

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आर्थिक संकट के राजनीतिक और सैन्य प्रभाव

पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) गठबंधन सरकार, पाकिस्तान में सत्ता में आने वाले हर शासन की तरह आर्थिक विकास का एक कार्यक्रम शुरू करने के लिए बेताब थी। इसने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक नयी पहल शुरू की और ‘गेम चेंजर’, ‘सामूहिक सरकार’ और ‘वन विंडो ऑपरेशन’ जैसे प्रचलित शब्दों की एक श्रंखला शुरू की।49 हालाँकि, कड़वी सच्चाई यह है कि सरकार ने इस काम के लिए सेना को आमंत्रित किया है कि वह अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करे और सुनिश्चित करे कि सभी विदेशी निवेशों का ठीक से प्रबंधन और समन्वय किया जाए ताकि परियोजना समय से पूरी हो सके। यदि पर्यावरण या श्रमिक संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, या यदि कोई विशेष प्रांत अपने व्यावसायिक हितों की वजह से हस्तक्षेप करती है, तो सेना इन तथाकथित बाधाओं को दूर कर देगी। निःसंदेह, इतिहास हमें बताता है कि आर्थिक बाधाएँ अक्सर इंसान की गर्दन पर कुल्हाड़ी मारकर समाप्त की जाती हैं।

पीडीएम सरकार के सैन्य-केंद्रित दृष्टिकोण के कारण संघीय सरकार तथा प्रांतीय सरकारों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होना निश्चित है। संविधान के अठारहवें संशोधन के तहत, शिक्षा, श्रम और पर्यावरण जैसे कई क्षेत्र अब प्रांतीय सरकारों के दायरे में आते हैं। चूँकि सेना ने पाकिस्तान के आर्थिक पुनरुद्धार की ज़िम्मेदारी ले ली है, ऐसे में अंतर-प्रांतीय संबंधों को प्रभावित करने वाली मेगा-परियोजनाओं पर किसी भी प्रकार की आपत्ति को सेना को सीधी चुनौती माना जा सकता है। इससे सैन्य-प्रभुत्व वाली केंद्र सरकार और राजनीतिक दलों के प्रभुत्व वाली प्रांतीय सरकारों के बीच अधिक तनाव पैदा होगा।

यह एक अभूतपूर्व परिवर्तन है जिस पर अधिकांश राजनीतिक टिप्पणीकारों का ध्यान लगभग पूरी तरह से नहीं गया है। वर्तमान पीडीएम गठबंधन सबसे पहले 2006 में एक साथ आया था जब वामपंथी रुझान वाली मध्यमार्गी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने दक्षिणपंथी रुझान वाली मध्यमार्गी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) को लोकतंत्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने के लिए आमंत्रित किया था, जिसमें कहा गया था कि कोई भी पार्टी दूसरे की सरकार को अपदस्थ करने के लिए सेना के साथ सहयोग नहीं करेगी। यह उल्लेखनीय था कि पाकिस्तान की दो सबसे बड़ी पार्टियाँ नागरिक मामलों में सेना की भूमिका के ख़िलाफ़ एकजुट हो गई थीं, क्योंकि देश के इतिहास में अधिकांश समय सरकार सैन्य तानाशाहों द्वारा या सेना की सक्रिय भागीदारी के साथ चलाई गई है। कुछ प्रगतिवादियों ने इस गठबंधन पर बहुत विश्वास किया, क्योंकि वह उम्मीद कर रहे थे कि यह पाकिस्तानी सेना के राजनीति से बाहर निकलने का संकेत है।

पाकिस्तान की सबसे बड़ी पार्टियों के स्पष्ट रूप से सत्ता विरोधी गठबंधन की पृष्ठभूमि में ही सेना ने कथित तौर पर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) का समर्थन किया, ख़ासकर 2014 के बाद, जब नवाज़ सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच अनबन हो गई थी। पीटीआई ने अन्य पार्टियों पर भ्रष्ट और अक्षम होने का आरोप लगाते हुए हमला किया और (बड़े पैमाने पर सेना द्वारा नियंत्रित) मीडिया ने इसी बात को दोहराया। पीडीएम ने तर्क दिया कि पीटीआई के उम्मीदवार इमरान ख़ान केवल उन ताक़तों के लिए एक मुखौटा थे जो लोकतंत्र के चार्टर को कमज़ोर करना चाहते थे और सेना को सत्ता में वापस लाना चाहते थे। विपक्ष ने इमरान ख़ान को ‘निर्वाचित प्रधानमंत्री’ कह कर संबोधित किया और पीटीआई के कार्यकाल के दौरान मीडिया, अर्थव्यवस्था और राजनीतिक निर्णयों पर बढ़ते सैन्य प्रभाव को रेखांकित किया।।

पीटीआई पर ‘हाइब्रिड शासन’ होने का आरोप लगाने वाला पीडीएम सत्ता में आने के बाद से हर स्तर पर सैन्यवादी रास्ते पर बहुत आगे चला गया है।50 पीटीआई तथा अन्य विपक्षी दलों का दमन करके सेना  ने न केवल देश की राजनीति को अपने हाथों में ले लिया है बल्कि इसे देश के आर्थिक मामलों को संभालने के लिए औपचारिक रूप से आमंत्रित भी किया गया है। यह एक व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय पूँजी द्वारा तीसरी दुनिया के देशों पर थोपी गई आर्थिक बाधाएँ अंततः इन देशों के राजनीतिक नेतृत्व को अर्थव्यवस्था का प्रबंधन सेना के हाथों में सौंपने के लिए प्रेरित करती हैं।

यह धारणा अब समाप्त हो चुकी है कि सेना को अपनी ‘संवैधानिक भूमिका’ के भीतर नियंत्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि पीडीएम आर्थिक संकट से घिरा हुआ है और उसे पीटीआई द्वारा चुनौती मिल रही है, ऐसे में न केवल विपक्ष का दमन करने के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने और आर्थिक परियोजनाओं को पूरा करने में मदद करने के लिए भी सेना पर भरोसा करना आसान हो गया है। लोकतंत्र का चार्टर रद्दी की टोकरी में चला गया है। इस संघर्ष में वास्तविक लाभार्थी पाकिस्तानी सेना है जिसका राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक क्षेत्र पर आधिपत्य अब मज़बूती से स्थापित हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय पूँजी और आईएमएफ द्वारा बनाई गई प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों ने एक सत्तावादी राज्य और समाज के लिए ज़मीन तैयार की है।

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निष्कर्ष: आख़िर पाकिस्तान किधर?

मार्क्सवादियों का मानना है कि इतिहास लगातार आगे बढ़ रहा है। मानवता के विकास के व्यापक ढाँचे में निस्संदेह रूप से यह सत्य है। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि प्रत्येक गाँव, क्षेत्र या देश हमेशा आगे बढ़ रहा है। जब इतिहास आगे बढ़ता है, तो कई समाज नष्ट हो जाते हैं (जैसा कि विभिन्न औपनिवेशिक परियोजनाओं के मामले में हुआ), स्थिर हो जाते हैं (बाइजैन्टाइन या ऑटोमन साम्राज्य), या उनका पतन हो जाता है। ऐसा कहा जा सकता है कि बाद की दो प्रवृत्तियाँ पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति पर लागू होती हैं।

स्वतंत्रता के बाद कुछ वास्तविक ऐतिहासिक प्रगति करने के बाद पाकिस्तान व्यापक सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक ठहराव, या शायद प्रतिगमन के दौर में प्रवेश कर गया है। इसलिए जिस तरह पाकिस्तान की जनता ने 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल की थी, उसी तरह आज उनके कंधों पर आर्थिक स्वतंत्रता के लिए संगठित होने, एकजुट होने और संघर्ष करने की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी है। यह लक्ष्य केवल पाकिस्तान के लिए नहीं है बल्कि संपूर्ण तीसरी दुनिया के लिए भी है, जो आर्थिक विकास के अवसरों को नष्ट करने वाली नव-उपनिवेशवादी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्थाओं की चपेट में है।


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संदर्भ सूची

1  Tricontinental: Institute for Social Research, Pakistan Under Water, red alert no. 15, 8 September 2022,   https://staging.thetricontinental.org/red-alert-15-pakistan- floods/.

2  ‘Pakistan’, IMF Country Information, International Monetary Fund, April 2023, https://www.imf.org/en/Countries/PAK

3  Economic Advisor’s Wing, Highlights: Pakistan Economic Survey 2022–23 (Islamabad: Finance Division, Government of Pakistan, June 2023), 1, https:// www.finance.gov.pk/survey/chapters_23/Highlights.pdf.

4 ‘Ranking by Population Growth Rate: All Countries in Asia’, Place Rankings, Data Commons, accessed 27 July 2023, https://datacommons.org/ranking/ GrowthRate_Count_Person/Country/asia?h=country/PAK&unit=%.

5 Erwin Knippenberg, Mattia Amadio, Nadeem Javaid, and Moritz Meyer, ‘Quantifying the Poverty Impact of the 2022 Floods in Pakistan’, World Bank Blog, 18 May 2023, https://blogs.worldbank.org/developmenttalk/quantifying- poverty-impact-2022-floods-pakistan.

6 The World Bank, ‘Pakistan: Flood Damages and Economic Losses Over USD 30 billion and Reconstruction Needs Over USD 16 billion – New Assessment’, The World Bank press release, 28 October 2022, https://www.worldbank.org/ en/news/press-release/2022/10/28/pakistan-flood-damages-and-economic- losses-over-usd-30-billion-and-reconstruction-needs-over-usd-16-billion- new-assessme.

7 ‘Pakistan GDP Growth Rate 1961–2023’, Macrotrends, accessed 17 July 2023, https://www.macrotrends.net/countries/PAK/pakistan/gdp-growth-rate

8 ‘Pakistan GDP’.

9 Mubasher Bukhari and Jibran Ahmad, ‘Five Killed in Stampedes at Flour Distribution Sites in Pakistan’, Reuters, 30 March 2023, https://www.reuters. com/world/asia-pacific/five-killed-stampedes-flour-distribution-sites- pakistan-2023-03-30/.

10 For examples of this reasoning, see Muslim Mooman, ‘Ukraine Crisis and Inflation’, The Express Tribune, 21 February 2022, https://tribune.com.pk/ story/2344472/ukraine-crisis-and-inflation; Gibran  Naiyyar  Peshimam, ‘US Concerned about Debt Pakistan Owes China, Official Says’, Reuters, 17 February 2023, https://www.reuters.com/world/asia-pacific/us-concerned- about-debt-pakistan-owes-china-official-says-2023-02-16/.

11 Gibran Naiyyar Peshimam, ‘US Concerned about Debt Pakistan Owes China, Official Says’, Reuters, 16 February 2023, https://www.reuters.com/ world/asia-pacific/us-concerned-about-debt-pakistan-owes-china-official- says-2023-02-16/.

12 Faseeh Mangi, ‘China’s Funding to Pakistan Stands at 30% of Foreign Debt’, Bloomberg, 2 September 2023, https://www.bloomberg.com/news/ articles/2022-09-02/china-s-funding-to-pakistan-stands-at-30-of-foreign- debt.

13 IMF Communications Department, ‘IMF Executive Board Approves US$3 billion Stand-By Arrangement for Pakistan’, International Monetary Fund, 23 July 2023, https://www.imf.org/en/News/Articles/2023/07/12/pr23261- pakistan-imf-exec-board-approves-us3bil-sba.

14 ‘Pakistan Tariff Rates 1995–2023’, Macrotrends, accessed 9 September 2023, https://www.macrotrends.net/countries/PAK/pakistan/tariff-rates.

15 ‘Pakistan Balance of Trade’, Trading Economics, accessed 16 September 2023, https://tradingeconomics.com/pakistan/balance-of-trade#:~:text=.

16 ‘Rescheduling of the Debt of Pakistan’, Paris Club, 13 December 2001, https:// clubdeparis.org/en/communications/press-release/rescheduling-of-the-debt- of-pakistan-13-12-2001.

17ये थे सिमिंगटन संशोधन (1976 में अपनाया गया और 1978 में लागू किया गया), प्रेसलर संशोधन (1990), और ग्लेन संशोधन (1977 में अपनाया गया लेकिन 1998 में पाकिस्तान पर लागू किया गया)। 2002-2003 के लिए पाकिस्तान को लगभग 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी सहायता देने का वादा किया गया था। देखें ‘The IMF, the US War on Terrorism, and Pakistan’, Asian Affair 31, no. 1 (2004), https://uwaterloo.ca/scholar/sites/ca.scholar/files/bmomani/files/the_imf_us_war_on_terrorism_and_pakistan_a_lesson_in_economic_ statecraft.pdf, 45.

18 Murtaza Haider, ‘Which Political Party Has Been the Best for Pakistan’s Economy? Trade Stats Reveal All’, DAWN, 16 May 2019, https://www.dawn. com/news/1482443.

19Salman Siddiqui, ‘Pakistan’s Current Account Deficit Peaks at $17.99b’, The Express Tribune, 20 July 2018, https://tribune.com.pk/story/1762078/ pakistans-current-account-deficit-peaks-17-99b.

20 1950 के दशक से पाकिस्तान सरकार कर में छूट और आयात लाइसेंसिग योजना के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा देती रही है। उदाहरण के लिए देखें,  Federal Board of Revenue, ‘Export Facilitation Scheme’, Revenue Division, Government of Pakistan, 13 August 2020, https://www.fbr.gov.pk/export-facilitaion-schemes/51149/132200. निर्यात प्रोत्साहन लाभ के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें Syed Zahid Abbass Naqvi, Aneeqa Nawaz, Ayesha Naeem, and Shahzad Ahmad, ‘Bearing of Export Subsidies on Pakistan’s Exports’, International Journal of Business Management and Economic Research 10, no. 3 (2019): 1587–1592, https://www. ijbmer.com/docs/volumes/vol10issue3/ijbmer2019100301.pdf.

21 ‘Pakistan Trade Balance 1960–2023’, Macrotrends, accessed 16 September 2023, https://www.macrotrends.net/countries/PAK/pakistan/trade-balance-deficit; Amna Puri-Mirza, ‘Value of Remittances Received in Pakistan from 2012 to 2022’, Statista, 9 August 2023, https://www.statista.com/statistics/880752/ pakistan-value-of-remittances/.

22 State Bank of Pakistan Infrastructure Taskforce, The Pakistan Infrastructure Report (Islamabad: State Bank of Pakistan, 2012), https://www.sbp.org.pk/ departments/ihfd/InfrastructureTaskForceReport.pdf; Khaleeq Kiani, ‘LNG Replaces Oil as Costliest Source of Power’, DAWN, 17 July 2023, https://www. dawn.com/news/1765123/lng-replaces-oil-as-costliest-source-of-power.

23 ‘Pakistan Imports by Category’, Trading Economics, accessed 26 September 2023, https://tradingeconomics.com/pakistan/imports-by-category.

24 Khaleeq Kiani, ‘Study Finds Fault with KESC Privatisation’, DAWN, 18 August 2012, https://www.dawn.com/news/743064/study-finds-fault-with- kesc-privatisation.

25 Zofeen T. Ebrahim, ‘Pakistan Energy Climate Change Future’, Reuters, 24 February 2021, https://www.reuters.com/article/us-pakistan-energy-climate- change-featur-idUSKBN2AO27C.

26    Ishrat Husain, ‘The Future of SOEs – Part 1’, The News International, 6 May 2023, https://www.thenews.com.pk/print/955466-the-future-of-soes

27 Husain, ‘The Future of SOEs’; Implementation and Economic Reforms Unit, Finance Division, Government of Pakistan, Federal Footprint: State Owned Entities (SOEs) Performance Review FY2013–14 (Islamabad: Finance Division, Government of Pakistan, 2014), https://www.finance.gov.pk/publications/ State_Owned_Entities_FY_2013_14.pdf.

28 Husain, ‘The Future of SOEs’; Implementation and Economic Reforms Unit, Finance Division, Government of Pakistan, Federal Footprint: SOEs Annual Report FY2019. Commercial SOEs, vol. 1 (Islamabad: Finance Division, Government of Pakistan, 2019), https://www.finance.gov.pk/publications/ SOE_Report_FY19_Vol_I.pdf

29 Implementation and Economic Reforms Unit, Finance Division, Government of Pakistan, ‘Special Section 2: Evaluating the Fiscal Burden of State-owned Enterprises in the Power Sector’, In The State of Pakistan’s Economy: Second Quarterly Report for FY19 (Islamabad: Finance Division, Government of Pakistan, 2019), https://www.sbp.org.pk/reports/quarterly/fy19/Second/ Special-Section-2.pdf.

30 Taimur Rahman, ‘Privatisation and Power’, Discourse, no. 2023–02 (May–June 2023), https://pide.org.pk/research/privatisation-and-power/.

31 Fahd Ali and Fatima Beg, The History of Private Power in Pakistan, Working Paper Series, no.106 (Sustainable Development Policy Institute, April 2007), https://sdpi.org/sdpiweb/publications/files/A106-A.pdf.

32 क्षमता शुल्क सरकार द्वारा निजी बिजली उत्पादकों को भूमि खरीद, डिज़ाइन, स्थापना, कर, बीमा, प्रशासन, ऋण सेवा और इक्विटी पर रिटर्न की लागत सहित निवेश पर  रिटर्न को कवर करने के लिए किया गया भुगतान है। ये शुल्क विनिमय दर और ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव जैसे कारकों को ध्यान में रखकर तय किए जाते हैं।

33 Senate Standing Committee, Senate of Pakistan, Report of the Sub-Committee of the Standing Committee on Power, Report no. 1 of 2020 (11 September 2019), https://senate.gov.pk/uploads/documents/1583320128_224.pdf.

34 Khaleeq Kiani, ‘Pakistan Facing “Exceptionally High” Risks, Says IMF’, DAWN, 19 July 2023, https://www.dawn.com/news/1765586/pakistan-facing- exceptionally-high-risks-says-imf.

35 Anjum Shahnawaz, ‘Government Employees in Pakistan Granted Salary Increase of up to 35%’, Pakistan Revenue, 6 July 2023, https://pkrevenue. com/government-employees-in-pakistan-granted-salary-increase-of-

up-to-35/#:~:text=Islamabad%2C%20July%206%2C%202023%20%E2%80%93,details%20of%20this%20salary%20raise\.

36 ‘Why Did Pakistan Need the IMF Deal? What Does It Need to Do Now?’, Al Jazeera, 30 June 2023, https://www.aljazeera.com/news/2023/6/30/why-did- pakistan-need-the-imf-deal-what-does-it-need-to-do-now.

37 Mubarak Zeb Khan, ‘Rs215bn in New Taxes to Help Seal IMF Deal’, DAWN, 25 June 2023, https://www.dawn.com/news/1761637.

38 यह एक लिखित प्रमाणन है जो बैंक (जारीकर्ता बैंक) द्वारा माल क्रेता के अनुदेश पर विक्रेता को जारी किया जाता है। दस्तावेजी ऋण का प्रयोग शामिल पक्षों को सुरक्षा प्रदान करता है। विक्रेता को भुगतान सुनिश्चित किया जाता है बशर्ते वह सहमत निबंधनों का अनुपालन करे, जबकि क्रेता दस्तावेजी ऋण में माल की गुणवत्ता व संख्या को लेकर सारी शर्तें व निबंधन शामिल कर सकता है जो उसे स्वयं माल को देखे या जाँचे बिना संतुष्ट करें। चूंकि बैंक विश्वसनीय तीसरे पक्ष या मध्यस्थ की भूमिका निभाता है इसलिए वह क्रेता व विक्रेता के मध्य विश्वास संबंधी मुद्दों का ख्याल रखता है। स्रोत: https://www.idbibank.in/hindi/tradefinance-letterofcredit.aspx

39 Ali Salman, ‘We Need a Minister of Economy’, The Express Tribune, 26 June 2023, https://tribune.com.pk/story/2423561/we-need-a-minister-of-economy.

40 ‘Pakistan Imports of Cotton’, Trading Economics, accessed 2 August 2023, https://tradingeconomics.com/pakistan/imports/cotton.

41 To learn more about this dynamic, see Tricontinental: Institute for Social Research, In the Ruins of the Present, working document no. 1, 1 March 2018, https://staging.thetricontinental.org/working-document-1/.

42 Malik Fahim Bashir, Taimur Khan, Yasir Bin Tariq, and Muhammad Akram, ‘Does Capital Flight Undermine Growth: A Case Study of Pakistan’, Journal of Money Laundering Control (31 August 2023), https://www.emerald.com/ insight/content/doi/10.1108/JMLC-07-2022-0100/full/html; ‘Capital Flight’, The Nation, 25 May 2015, https://www.nation.com.pk/25-May-2015/capital- flight?show=486.

43 ‘800,000 Professionals, Left Pakistan in 2022’, Daily Times, 1 February 2023, https://dailytimes.com.pk/1058262/800000-professionals-left-pakistan-in-2022/.

44 Zafar Bhutta, ‘Power Sector to Eat up Major Chunk of Subsidies’, The Express Tribune, 10 June 2023, https://tribune.com.pk/story/2421017/power-sector-to- eat-up-major-chunk-of-subsidies; ‘Pakistan Further Removes Fuel Subsidies to Win IMF Funding –Finmin’, Reuters, 15 June 2023, https://www.reuters. com/markets/asia/pakistan-further-removes-fuel-subsidies-win-imf-funding- finmin-2022-06-15/.

45 Bhutta, ‘Power Sector to Eat up Major Chunk of Subsidies’.

46 ‘IPPs’, Central Power Purchasing Agency (Market Operator), https://www. cppa.gov.pk/ipps.

47 ‘Decisions on Provisional Measures’, Tethyan Copper Company Pty Limited v. Islamic Republic of Pakistan, case no. ARB/12/1 (Washington, DC: International Centre for Settlement of Investment Disputes, 13 December 2012), http://icsidfiles.worldbank.org/icsid/icsidblobs/OnlineAwards/C3805/ DC4984_en.pdf.

48 ‘About the IMF’, International Monetary Fund, accessed 2 August 2023, https://www.imf.org/external/pubs/ft/ar/2016/eng/about.htm#:~:text=It%20 works%20to%20foster%20global,reduce%20poverty%20around%20the%20 world.

49 ‘Exporters’ Issues: PM for Establishing One-Window Facilitation Centres’, Business Recorder, 17 July 2023, https://www.brecorder.com/news/40252962.

50 Imitaz Alam, ‘As Imran Khan’s Populism Goes Bust, Pakistan’s Hybrid Regime Remains Mired in Crisis’, 1 June 2023, https://thewire.in/south-asia/imran- khan-pakistan-populism-hybrid-regime.

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